प्यार और दौलत की दुनिया अक्सर एक-दूसरे से टकराती है, लेकिन जब इसमें असुरक्षा और अहंकार का ज़हर घुल जाए, तो एक खूबसूरत प्रेम कहानी भी भयानक साजिश का रूप ले लेती है।

यह कहानी है राधा की, जो एक अमीर व्यापारी की इकलौती बेटी थी और अपनी हवेली में एक रानी की तरह राज करती थी। यह कहानी है नारायण की, जिसके बेइंतहा प्यार ने राधा को हर खुशी दी। लेकिन यह कहानी उस मोड़ पर आकर एक डरावना सपना बन जाती है, जहाँ एक अधूरी ख्वाहिश सब कुछ तबाह कर देती है।
प्यार और एक अधूरी ख्वाहिश
राधा की जिंदगी किसी परी कथा से कम नहीं थी। उसका पालन-पोषण बेहद लाड-प्यार से हुआ और उसकी हर इच्छा पूरी की गई। एक समारोह में प्रताप सिंह के बेटे नारायण की नज़रें राधा पर पड़ीं और वह पहली ही नज़र में अपना दिल हार बैठे। जल्द ही उनकी शादी हो गई और राधा उस विशाल हवेली की महारानी बन गई। नारायण उस पर जान छिड़कता था और राधा का हर हुक्म सर आँखों पर रखता था।
सब कुछ उत्तम था, सिवाय एक चीज़ के। शादी के 12 साल बीत चुके थे, लेकिन उनकी गोद सूनी थी। यही सूनापन राधा के दिल में एक डर बनकर घर कर गया था। उसे डर था कि हवेली को वारिस न दे पाने की वजह से उसकी बादशाहत छिन जाएगी। उसे डर था कि नारायण दूसरी शादी कर लेगा और उसकी जगह कोई और ले लेगी। यह डर धीरे-धीरे एक सनक में बदल गया।
साजिश की वो काली रात
अपने राज को बचाने के लिए राधा ने एक ऐसी भयानक योजना बनाई, जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। उसने अपने आधे-पागल देवर शिव का इस्तेमाल करने का सोचा। उसने सोचा कि शिव की शादी करवाकर वह हवेली के लिए वारिस हासिल कर लेगी और उस बच्चे पर अपना हक जताकर हमेशा के लिए अपनी जगह पक्की कर लेगी।
उसने एक सीधी-सादी और खूबसूरत लड़की नैना को इस जाल के लिए चुना। राधा नैना के माता-पिता के पास नारायण की माँ बनकर गई और झूठ बोला कि वह अपने बेटे की दूसरी शादी करवाना चाहती है ताकि हवेली को वारिस मिल सके। दौलत के लालच में नैना के माता-पिता इस धोखे में आ गए।

शादी वाले दिन, राधा ने एक गहरा षड्यंत्र रचा। उसने अपने देवर शिव को दूल्हे के सेहरे के पीछे बिठा दिया। नैना और उसके माता-पिता यही समझते रहे कि शादी नारायण से हो रही है, लेकिन असल में निकाह शिव से हो गया। शादी के तुरंत बाद, राधा ने नैना के माता-पिता को हवेली से धक्के मारकर निकाल दिया और उनके आने पर हमेशा के लिए पाबंदी लगा दी।
जब पर्दा उठा राज़ से
राधा अपनी योजना में सफल हो चुकी थी। कुछ ही समय में पता चला कि नैना गर्भवती है। राधा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसे लगा कि अब हवेली का वारिस उसकी मुट्ठी में होगा और वह नैना को भी दूध में से मक्खी की तरह निकालकर बाहर फेंक देगी।
नौ महीने बाद, नैना ने एक बेटे को जन्म दिया। राधा ने तुरंत बच्चे को उससे छीन लिया और नैना को एक कमरे में कैद कर दिया। वह बच्चे को अपना बताकर नारायण के साथ अपनी जिंदगी को मुकम्मल मान रही थी। एक दिन उसने फैसला किया कि अब नैना की कोई जरूरत नहीं है और उसे घसीटते हुए हवेली से बाहर निकालने लगी।
तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी राधा ने कल्पना भी नहीं की थी।
“यह क्या कर रही हो राधा?” जिंदगी में पहली बार नारायण गुस्से से दहाड़ा।
“आप इस लड़की के लिए मुझ पर चिल्ला रहे हैं?” राधा ने हैरान होकर पूछा।
“तुम इसे इस हवेली से नहीं निकाल सकती, क्योंकि यह हवेली के वारिस की माँ है!” नारायण चीखा।
“हवेली के वारिस की माँ मैं हूँ!” राधा की आवाज़ से दीवारें कांप उठीं।

तभी नारायण ने वह राज़ खोला जिसने राधा के पैरों तले जमीन खिसका दी। “यह सिर्फ वारिस की माँ नहीं, बल्कि इस हवेली के मालिक की पत्नी भी है। उस दिन सेहरे के पीछे शिव नहीं, बल्कि मैं था। यह बच्चा मेरा अपना खून है।”
यह सुनते ही राधा का संसार उजड़ गया। उसकी अपनी ही चाल उस पर उल्टी पड़ चुकी थी। जिस पति को वह काबू में समझती थी, उसने खामोशी से एक ऐसा खेल रच दिया था कि राधा अपनी ही बिछाई बिसात में मात खा गई। इस सदमे और गुस्से में वह अपना संतुलन खो बैठी और शीशे की मेज से टकराकर बेहोश हो गई।
कहानी से सीख (A Lesson for Lovers)
जब राधा को होश आया, तो 6 महीने बीत चुके थे। वह अस्पताल में अकेली थी और उसके हाथ में नारायण के भेजे हुए तलाक के कागजात थे। उसकी दौलत, उसकी हवेली, उसका पति, सब कुछ छिन चुका था। उसने जो कुआँ दूसरों के लिए खोदा था, आज वह खुद उसमें गिरी पड़ी थी।

यह कहानी हमें प्यार और रिश्तों के बारे में एक गहरी सीख देती है:
- विश्वास ही रिश्ते की नींव है: राधा ने नारायण के प्यार पर कभी विश्वास नहीं किया। उसकी असुरक्षा ने उसे इतना अंधा कर दिया कि उसने अपने ही प्यार के खिलाफ साजिश रच डाली। यदि उसने नारायण से खुलकर बात की होती, तो शायद कहानी कुछ और होती।
- अहंकार और हक जताना प्यार को खत्म कर देता है: राधा प्यार को एक सल्तनत समझती थी, जिस पर वह राज करना चाहती थी। उसने नारायण को एक इंसान नहीं, बल्कि अपनी जागीर का हिस्सा समझा। सच्चा प्यार हक जताने से नहीं, बल्कि सम्मान देने से बढ़ता है।
- दौलत रिश्ते नहीं बना सकती: राधा को लगा कि दौलत और हवेली पर उसका नियंत्रण ही सब कुछ है। लेकिन अंत में नारायण ने साबित कर दिया कि असली दौलत एक प्यार करने वाला परिवार होता है, जिसे राधा ने हमेशा नज़रअंदाज़ किया।
- कर्म का फल: यह कहानी “बुरे का अंत बुरा होता है” की कहावत को सच करती है। राधा ने जो धोखा और दर्द नैना को दिया, अंत में वही दर्द उसे सौ गुना होकर वापस मिला।
प्यार एक खूबसूरत एहसास है, इसे साजिशों और असुरक्षा के भंवर में न उलझाएं। एक-दूसरे पर विश्वास करें, क्योंकि जिस दिन विश्वास टूटता है, उस दिन सबसे खूबसूरत रिश्ता भी काँच की तरह बिखर जाता है।