मजबूरी का साया: झूठ से बुनी अमर मोहब्बत

शंकर एक साधारण गांव का लड़का था, जो उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव शिवपुर से निकलकर लखनऊ की चकाचौंध में रोजी-रोटी की तलाश में आया था।

बेरोजगारी की मार ने उसे सड़कों पर भटकने को मजबूर कर दिया, लेकिन किस्मत ने उसे राजू नाम के पुराने दोस्त का साथ दिया। राजू ने उसे ड्राइविंग सिखाई, और जल्द ही शंकर को शहर के मशहूर व्यवसायी सेठ धर्मवीर सिंह के घर में ड्राइवर की नौकरी मिल गई। घर में सिर्फ सेठ जी, उनकी पत्नी दुर्गा देवी और उनकी इकलौती बेटी गौरी रहती थी। गौरी एक खूबसूरत, बुद्धिमान लड़की थी, जो लखनऊ के प्रतिष्ठित कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी। शंकर का काम था उसे रोजाना कॉलेज छोड़ना और शाम को वापस लाना।

शंकर गांव का सीधा-सादा इंसान था, इज्जत और मर्यादा उसके लिए सबकुछ थी। वह कभी गौरी की तरफ आंख उठाकर नहीं देखता, हमेशा नजरें झुकाए रहता। लेकिन गौरी बातूनी थी। रास्ते में वह अपनी जिंदगी, सहेलियों और सपनों की बातें शेयर करती। शंकर सिर्फ हामी भरता या मुस्कुरा देता। गौरी पढ़ाई में अव्वल थी, और उसके पिता उसे हर सुख-सुविधा देते थे। जब उसने नई कार की फरमाइश की, तो सेठ जी ने फौरन मर्सिडीज खरीद दी।

गौरी ने खुशी से शंकर को कहा, “देखो शंकर जी, तुम्हारे लिए नई गाड़ी ली है!” उसकी मासूम शरारतों से शंकर प्रभावित होता, लेकिन अपनी सीमाओं में रहता। गौरी अक्सर उसके लिए और उसकी छोटी बहन लक्ष्मी के लिए तोहफे लाती, क्योंकि लक्ष्मी की शादी नजदीक थी। एक बार तो उसने लक्ष्मी के लिए लहंगा लाकर दिया। शंकर सोचता, यह लड़की कितनी नेक है। लेकिन किसे पता था कि यही नेकी एक दिन उसके जीवन में तूफान ला देगी?

एक दिन सेठ जी के बड़े भाई दिल्ली में बीमार पड़ गए। सेठ जी और दुर्गा देवी को तुरंत जाना पड़ा। गौरी की परीक्षाओं की वजह से वे उसे घर पर छोड़ गए। जाते वक्त सेठ जी ने शंकर को जिम्मेदारी सौंपी: “गौरी का ख्याल रखना, उसे कॉलेज लाना-ले जाना।” शंकर दो साल से उनके साथ था, वे उस पर भरोसा करते थे। सेठ जी दिल्ली चले गए, और शंकर अपनी ड्यूटी निभाने लगा। इसी बीच, लक्ष्मी की शादी के लिए पैसे जुटाने को वह खाली समय में मैकेनिक की दुकान पर काम सीखता। एक महीना गुजरा, सेठ जी के भाई चल बसे। उसी रात गौरी का फोन आया: “शंकर जी, तबीयत खराब है, जल्दी आओ। शायद डॉक्टर के पास जाना पड़े।” रात का वक्त, बंगले में अकेला जाना उचित नहीं था, लेकिन गौरी की हालत सुनकर शंकर गया। वह तेज बुखार में तप रही थी। शंकर पूरी रात उसके पास बैठा रहा, उसका ख्याल रखा। सुबह हालत सुधरी तो वह लौट आया। जाते वक्त उसने अपनी भगवान कृष्ण की मूर्ति दी: “यह रखो, रक्षा करेगी।”

उसके बाद गौरी खोई-खोई रहने लगी। पढ़ाई प्रभावित हुई, टीचर्स ने शिकायत की। शंकर ने दुर्गा देवी को फोन पर बताया कि वह पढ़ाई से परेशान है। लेकिन हकीकत कुछ और थी। दो महीने बाद सेठ जी लौटे। शंकर खुश हुआ, लेकिन तभी सेठ जी ने डंडा उठाकर उसे पीटना शुरू कर दिया। “हरामी, मेरी बेटी के साथ क्या किया?” शंकर हैरान। फिर पता चला: गौरी ने आरोप लगाया कि शंकर ने उस रात उसके साथ जबरदस्ती की, वह गर्भवती है। डर से उसने माता-पिता को पहले नहीं बताया। शंकर के पैरों तले जमीन खिसक गई। गौरी झूठ बोल रही थी, चेहरे पर कोई शर्म नहीं। सेठ जी पुलिस बुलाने लगे, लेकिन गौरी ने रोका: “इज्जत पर आंच आएगी।” शंकर को नौकरी से निकाल दिया गया। वह बेघर, बेरोजगार हो गया, जबकि लक्ष्मी की शादी सिर पर थी।

मजबूरी में शंकर सेठ जी के पास लौटा, बेगुनाही साबित करने। लेकिन सेठ जी ने शर्त रखी: “गौरी से शादी करो, बच्चा होने पर छोड़कर चले जाना। बच्चा गिराने से खतरा है। मंगेतर राजेश छोड़ गया। समाज में बदनामी से बचाने को ऐसा करो।” शंकर जानता था बच्चा उसका नहीं, लेकिन लक्ष्मी की शादी के लिए 5 लाख रुपये के वादे पर राजी हो गया। हिंदू रीति से शादी हुई, कोई उत्सव नहीं। शंकर गौरी को गांव ले आया। घरवालों ने हैरानी से देखा, लेकिन मां ने गौरी को अपनाया, साड़ी-चूड़ी से सजाया। शाम को कमरे में गौरी दुल्हन बनी बैठी थी। शंकर उसे देखकर मोहित हुआ, लेकिन गुस्सा याद आया। वह बोला: “तुम्हें माफ नहीं कर सकता। बच्चा होने पर चली जाना।”

गौरी रो पड़ी, पैरों में गिर गई: “मैं शर्मिंदा हूं। लेकिन मजबूरी थी।” शंकर रुका। गौरी ने सच्चाई बताई: वह गर्भवती नहीं। सब झूठ था। राजेश, उसका मंगेतर, बिगड़ा हुआ था – शराबी, जुआरी, बदतमीज। दिल्ली जाते वक्त राजेश ने कई बार गौरी को परेशान किया, हिंसा की कोशिश की। ताऊजी की मौत वाली शाम से पहले वह दोस्तों संग बंगले में घुसने की कोशिश कर चुका था। गौरी डरी हुई थी, इसलिए शंकर को रात भर बुलाया। सेठ जी को सब पता चला, उन्होंने रिश्ता तोड़ना चाहा। लेकिन राजेश ने धमकी दी: “गौरी की जिंदगी बर्बाद कर दूंगा।” सेठ जी ने प्लान बनाया – शंकर पर आरोप लगाकर राजेश से छुटकारा पाया, क्योंकि वे शंकर के चरित्र पर भरोसा करते थे। पैसों की जरूरत जानकर शंकर को वापस बुलाया और शादी कराई। “पापा जानते थे, तुम नेक हो, मुझे अपनाओगे।”

शंकर हैरान, लेकिन गौरी की बेबसी देखकर गले लगा लिया। मजबूरी का बंधन मोहब्बत में बदल गया। गांव में शादी की रस्में हुईं, सेठ जी आए, माफी मांगी। राजेश ने हमला किया, लेकिन गिरफ्तार हो गया। गौरी गांव की जिंदगी में रच-बस गई, शंकर के साथ खुशहाल जीवन बिताने लगी।

सीख: जिंदगी में झूठ कभी-कभी इज्जत बचाने की मजबूरी बन जाता है, लेकिन सच्चाई हमेशा जीतती है। बच्चों की किस्मत के फैसले बचपन में न लें; बड़े होकर इंसान बदल सकता है। सच्चा प्रेम हालातों से जन्म लेता है, और निष्ठा से मजबूत होता है। कभी किसी पर आरोप लगाने से पहले सच्चाई जानें, क्योंकि मजबूरी का साया किसी की भी जिंदगी बदल सकता है।

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