अंधेरी रात का वो सच: एक अनकहा रिश्ता

परिचय

मेरा नाम राधिका है, और आज मैं आपको अपनी ज़िंदगी की वो कहानी बताने जा रही हूँ, जिसने मेरे अस्तित्व को ही बदलकर रख दिया। ये कहानी है प्यार, त्याग, और एक ऐसे रिश्ते की, जिसे समाज शायद कभी स्वीकार न करे। मेरी शादी को बस एक साल ही हुआ था, जब मेरे पति, सेना में मेजर, देश के लिए शहीद हो गए। उनकी शहादत ने मुझे गर्व तो दिया, पर साथ ही एक ऐसा खालीपन भी दे गया, जिसे भरना नामुमकिन सा लगता था। मैं 26 साल की उम्र में विधवा हो गई थी।

अकेलेपन का अँधेरा

पति के जाने के बाद ज़िंदगी एक बोझ सी लगने लगी थी। हर दिन उनकी यादों के सहारे कटता था। मेरे सास-ससुर बहुत अच्छे थे, उन्होंने मुझे अपनी बेटी की तरह रखा, लेकिन मेरे दिल का सूनापन कोई नहीं भर सकता था। घर में मेरे देवर, सुमित, भी थे, जो मेरे पति से पाँच साल छोटे थे। वो बहुत चंचल और ज़िंदादिल थे। अक्सर मुझे हँसाने की कोशिश करते, ताकि मैं अपने दुःख से बाहर आ सकूँ। मैं उनकी कोशिशों को समझती थी, पर मेरा मन किसी भी चीज़ में नहीं लगता था।

धीरे-धीरे वक्त बीतता गया। मैंने घर के कामों और खेत-खलिहान में खुद को व्यस्त रखना शुरू कर दिया। सुमित भी खेती में मेरा हाथ बंटाते थे। हम साथ में काम करते, साथ में खाना खाते। उनके साथ रहते-रहते मुझे एक अजीब सा सुकून मिलने लगा था। वो बिल्कुल अपने भाई की तरह ही दिखते थे, वही मुस्कान, वही बातें करने का अंदाज़। कभी-कभी तो मुझे उनमें अपने पति की ही छवि नज़र आने लगती थी।

वो तूफानी रात और एक अनजाना सच

एक दिन हम खेत में काम कर रहे थे कि अचानक मौसम खराब हो गया। काले बादल घिर आए और ज़ोरों की बारिश होने लगी। हम भागकर खेत में बने पुराने स्टोर-रूम में छिप गए। बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी और देखते-ही-देखते रात हो गई। घर लौटना मुमकिन नहीं था।

उस छोटी सी कोठरी में हम दोनों अकेले थे। बाहर बिजली कड़क रही थी और अंदर एक अजीब सी खामोशी थी। ठंड से मेरे दाँत किटकिटा रहे थे। सुमित ने लकड़ियाँ जलाकर आग जलाई और मुझे उसके पास बैठने को कहा। हम दोनों आग के पास बैठे एक-दूसरे से बातें करने लगे। बातों-बातों में सुमित ने बताया कि वो मुझसे कितना प्यार करते हैं। उन्होंने कहा, “भाभी, जब से भाई गए हैं, मैंने आपको हर रोज़ टूटते हुए देखा है। मैं आपको इस तरह और नहीं देख सकता। मैं आपसे शादी करना चाहता हूँ।”

मैं उनकी बात सुनकर सन्न रह गई। मुझे समझ नहीं आया कि क्या कहूँ। मैंने हमेशा उन्हें अपने छोटे भाई की तरह देखा था। लेकिन उस रात, उनकी आँखों में मैंने अपने लिए जो प्यार और परवाह देखी, उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। पर तभी मेरे मन में एक खौफनाक ख्याल आया। मुझे याद आया कि कुछ महीने पहले, मेरे पति की अलमारी से मुझे एक डायरी मिली थी। वो डायरी सुमित की थी, जिसमें उन्होंने मेरे लिए अपनी भावनाओं के बारे में लिखा था। उस दिन मैंने उसे पढ़कर वापस रख दिया था और सोचा था कि शायद यह महज़ एक बचकाना आकर्षण होगा।

पर आज सुमित का इज़हार और वो डायरी की बातें… क्या यह सब एक सोचा-समझा खेल था? क्या सुमित ने मेरे अकेलेपन का फायदा उठाने की कोशिश की थी? मेरे मन में शक का बीज पनपने लगा। मैं डर गई।

मैंने उनसे कहा, “सुमित, तुम मेरे देवर हो। यह रिश्ता मुमकिन नहीं है।”

मेरी बात सुनकर वो चुप हो गए। उनके चेहरे पर एक गहरी उदासी छा गई। उन्होंने बस इतना कहा, “मैं आपकी इज़्ज़त करता हूँ, भाभी। अगर आपको यह मंज़ूर नहीं, तो मैं दोबारा कभी इस बारे में बात नहीं करूँगा।”

पूरी रात मैं सो नहीं पाई। एक तरफ उनका सच्चा प्यार था और दूसरी तरफ मेरे मन का वहम।

सच्चाई का सामना

सुबह जब हम घर लौटे, तो मैंने फैसला किया कि मैं इस शक के साथ नहीं जी सकती। मैंने हिम्मत करके सुमित से उनकी डायरी के बारे में पूछा। मेरी बात सुनकर वो हैरान रह गए, फिर उन्होंने जो बताया, उसे सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

उन्होंने बताया कि वो मुझसे तब से प्यार करते थे, जब उनकी और मेरे पति की शादी की बात चल रही थी। उन्होंने अपने भाई को भी इस बारे में बताया था। मेरे पति जानते थे कि सुमित मुझसे कितना प्यार करते हैं। शहादत से कुछ दिन पहले, मेरे पति ने सुमित से वादा लिया था कि अगर उन्हें कुछ हो गया, तो वो मुझे हमेशा खुश रखेंगे और अगर मैं चाहूँ, तो मुझसे शादी कर लेंगे। यह सुनकर मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। जिस इंसान पर मैं शक कर रही थी, वो तो अपने भाई के वादे को निभा रहा था।

कहानी का अंत और सीख

उस दिन मुझे एहसास हुआ कि प्यार किसी रिश्ते या बंधन का मोहताज नहीं होता। मैंने सुमित के निस्वार्थ प्रेम को स्वीकार किया। हमने अपने परिवार वालों से बात की। शुरुआत में थोड़ी हिचकिचाहट हुई, लेकिन अंत में सबने हमारे रिश्ते को अपना लिया। आज हमारी शादी को पाँच साल हो गए हैं और हमारा एक प्यारा सा बेटा भी है। सुमित ने मुझे वो हर खुशी दी, जिसकी मैं हकदार थी।

सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है, जहाँ सही और गलत का फैसला करना मुश्किल हो जाता है। किसी भी रिश्ते को शक की निगाह से देखने के बजाय, हमें उसे समझने का एक मौका ज़रूर देना चाहिए। सच्चा प्यार और एक अच्छा जीवनसाथी किस्मत वालों को ही मिलता है, और जब वो मिले, तो समाज की परवाह किए बिना उसे अपना लेना चाहिए। जीवन में एक साथी का होना बहुत ज़रूरी है, जो आपके हर दुःख-सुख में आपका साथ निभाए।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top