मेरा नाम शंकर है, और मैं अपनी प्यारी पत्नी राधा के साथ मुंबई के एक छोटे से किराए के मकान में रहता था। हमारी दुनिया छोटी थी, मगर प्रेम और सुकून से भरी थी। राधा की हर मुस्कान मेरे लिए दुनिया की सबसे बड़ी दौलत थी।

एक दिन राधा ने मुझसे रसोई के बगल में एक छोटा सा भंडार-गृह (Storeroom) बनवाने की ख्वाहिश ज़ाहिर की। उसकी खुशी के लिए मैंने दिन-रात एक कर दिया, दोगुनी मेहनत की और कुछ ही हफ्तों में वो कमरा तैयार करवा दिया। मुझे लगा कि मैंने राधा को दुनिया की सारी खुशियाँ दे दी हैं, लेकिन मुझे क्या पता था कि यही कमरा हमारी खुशियों पर शक का ताला लगाने वाला है।
एक बंद दरवाज़ा और पत्नी का बदलता व्यवहार
कमरा बनने के बाद, मेरी हंसमुख राधा अचानक बदल गई। वह चुपचाप और चिड़चिड़ी रहने लगी। मैंने उसे कई बार अकेले में छिप-छिप कर रोते हुए देखा। उसका ज़्यादातर समय या तो रसोई में बीतता या फिर उसी नए बने कमरे के आस-पास। जब भी मैं उससे उसकी परेशानी की वजह पूछता, तो वह बात टाल देती।

मेरा दिल बेचैन रहने लगा। हमारी शादी को कई साल हो गए थे, पर हमारे बीच कभी कोई राज़ नहीं था। लेकिन अब मुझे लग रहा था कि राधा मुझसे कुछ बहुत बड़ा छिपा रही है।
कमरे से आती वो रहस्यमयी फुसफुसाहटें
एक रात, गहरी नींद में मुझे कुछ फुसफुसाहटों की आवाज़ सुनाई दी। मैं चौंक गया। घर में मेरे और राधा के अलावा तो कोई था ही नहीं। तो फिर राधा किससे बातें कर रही थी? मेरा दिल शक और डर से भर गया। मैंने राधा से पूछा तो उसने कहा, “यह आपका वहम है।”
लेकिन यह मेरा वहम नहीं था। मैंने कई बार राधा को उस बंद कमरे से सुबह-सवेरे निकलते देखा। जब भी वह मुझे देखती, तो घबरा जाती और उसके माथे पर पसीना आ जाता। एक बार मैंने उस कमरे का दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, तो वह अंदर से बंद था। मेरे पूछने पर राधा ने बताया कि उसने अपने कीमती ज़ेवर और ज़रूरी कागज़ात उस कमरे में रखे हैं और सुरक्षा के लिए ताला लगाती है।

उसका जवाब मेरे गले नहीं उतरा। मेरे मन में भयानक ख्याल आने लगे—क्या राधा पर किसी बुरी आत्मा का साया है? या… या वह एक धोखेबाज़ औरत है जो मुझसे छिपकर किसी और से मिलती है? यह सोचकर ही मेरा दिल टूट जाता था, लेकिन मैं क्या करता? मेरे पास कोई सबूत नहीं था।
राज़ खुलने का वो दिन…
आख़िरकार, मैंने सच का पता लगाने का फैसला किया। एक दिन मैं ऑफिस जाने का नाटक करके घर में ही छिप गया। मैंने देखा कि राधा ने नाश्ते की दो थालियाँ और चाय के दो कप तैयार किए और उस बंद कमरे का ताला खोलकर अंदर चली गई।
यह देखकर मेरा खून खौल उठा। मेरे घर में, मेरी ही छत के नीचे कोई और भी था! मैं गुस्से, दर्द और नफरत से कांपता हुआ उस कमरे की तरफ बढ़ा। आज मैं राधा को रंगे हाथों पकड़कर उसे हमेशा के लिए अपनी ज़िंदगी से निकाल देना चाहता था।

मैंने कांपते हुए हाथों से दरवाज़े को एक ज़ोरदार धक्का दिया और चिल्लाया, “राधा!”
मगर अंदर का नज़ारा देखकर मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। मैं शर्मिंदगी और पछतावे के बोझ तले दब गया।
कमरे के अंदर राधा नाश्ते का निवाला अपनी सौतेली माँ, कमला देवी, को खिला रही थी। वही माँ, जिनसे मैं बचपन से नफरत करता आया था और जिन्हें मैंने कभी अपनी माँ का दर्जा नहीं दिया था।
त्याग और प्रेम की एक अनकही कहानी
राधा ने रोते हुए मुझे पूरी सच्चाई बताई। मेरे पिता के गुज़रने के बाद मकान मालिक ने मेरी सौतेली माँ को घर से निकाल दिया था। उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था, तो वह बेबस होकर राधा से मदद मांगने आई थीं। राधा जानती थी कि मैं अपनी सौतेली माँ को पसंद नहीं करता, इसलिए घर में झगड़ा न हो, इस डर से उसने यह बात मुझसे छिपाई और महीनों तक चुपचाप अपनी सास और मेरी माँ की उस छोटे से कमरे में सेवा करती रही।
वो फुसफुसाहटें किसी और की नहीं, बल्कि मेरी माँ की थीं, जिन्हें राधा चुपचाप खाना खिलाती और उनका हाल-चाल पूछती थी।
उस दिन मुझे एहसास हुआ कि मैं अपनी पत्नी के त्याग और महानता को समझने में कितना छोटा पड़ गया था। मैं जिन फुसफुसाहटों को धोखा समझ रहा था, वे असल में सेवा और प्रेम के शब्द थे। मैं शर्म से पानी-पानी हो गया और अपनी पत्नी और माँ, दोनों के कदमों में गिरकर रोने लगा।
कहानी से सीख (The Moral of the Story)
- शक रिश्तों को खोखला कर देता है: यह कहानी सिखाती है कि किसी भी रिश्ते की नींव विश्वास होती है। शक करने से पहले सच्चाई जानने की कोशिश करनी चाहिए, वरना हम अपने प्यारे लोगों को गलत समझ बैठते हैं।
- महानता शोर नहीं करती: राधा ने चुपचाप, बिना किसी को बताए, अपनी इंसानियत और अपने फ़र्ज़ को निभाया। सच्चा प्रेम और त्याग अक्सर खामोशी से ही किए जाते हैं।
- हर औरत सम्मान की हकदार है: शंकर अपनी सौतेली माँ को स्वीकार नहीं कर पाया, लेकिन राधा ने उन्हें माँ का सम्मान दिया। यह कहानी सिखाती है कि हर माँ, चाहे वह सगी हो या सौतेली, सम्मान और प्रेम की हकदार होती है।