शादी के बाद हर लड़की अपने पति से कुछ न कुछ उम्मीद रखती है। अंजलि भी उन्हीं में से एक थी।
उसने सोचा था कि शादी के बाद उसकी दुनिया किसी फिल्मी कहानी जैसी होगी — प्यार, घूमना, सरप्राइज़ गिफ्ट्स और नॉनस्टॉप खुशियाँ।

लेकिन उसकी उम्मीदों से बिल्कुल अलग, राहुल एक सीधा-साधा इंसान था।
उसे दिखावा पसंद नहीं था, उसे प्यार दिखाने के लिए किसी महंगे गिफ्ट या विदेश ट्रिप की ज़रूरत नहीं थी।
“अंजलि, मैं ऑफिस निकल रहा हूँ।”
“रुकिए, टिफिन तो ले जाइए!”

राहुल का मुस्कुराना सब कुछ कह देता था, पर अंजलि के मन में कुछ खालीपन सा था।
तीन महीने बीत चुके थे शादी को, पर उसके सपने अभी भी अधूरे थे। न कोई हनीमून ट्रिप, न कोई महंगी ड्रेस, न कोई सरप्राइज़।
उसके भीतर एक आवाज उठी —
“क्या मेरी खुशियों का कोई मोल नहीं?”
छोटे-छोटे सवाल, बड़ी बेचैनियाँ
एक दिन उसने हिम्मत जुटाकर पूछ लिया —
“राहुल जी, हम हनीमून पर कब जाएंगे?”
राहुल ने प्यार से समझाया:
“अभी नहीं अंजलि, शादी में बहुत खर्चा हो चुका है। थोड़ा संभल लें, फिर चलते हैं।”

अंजलि चुप हो गई, पर भीतर कहीं एक दरार बन चुकी थी।
राहुल ने सुझाव दिया —
“अगर बोर हो रही हो तो जॉब कर लो, तुम्हें अच्छा लगेगा।”
लेकिन अंजलि ने तो सोचा था शादी के बाद सारा वक्त सिर्फ प्यार और खुशियों में बीतेगा।
फिर भी, हालात से हारकर उसने नौकरी ढूँढनी शुरू कर दी।
नई शुरुआत, पुरानी यादें
एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब मिलते ही अंजलि की ज़िंदगी में नया मोड़ आया।
ऑफिस के पहले दिन ही उसकी मुलाकात हुई अमन से — कॉलेज टाइम का दोस्त, वही बेफिक्र, हंसमुख और सपनों से भरा इंसान।

उन दोनों की बातें फिर से शुरू हुईं।
कॉफी शॉप, कैफेटेरिया, मीटिंग के बहाने छोटी-छोटी मुलाकातें…
और धीरे-धीरे अंजलि को एक अजीब सी खुशी मिलने लगी — जो राहुल के साथ रहते हुए कहीं खो गई थी।
दिल के दरवाज़े धीरे-धीरे खुलते गए
एक दिन अमन ने पूछ लिया:
“तुम्हारा हसबैंड तुम्हें हनीमून पर क्यों नहीं ले गया?”
अंजलि ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया:
“उसे फॉरिन ट्रिप्स में कोई दिलचस्पी नहीं है… उसे यहीं देश में घूमना पसंद है।”
अमन ने ठंडी सांस ली और बोला:
“काश तुम्हें कोई वो दुनिया दिखा पाता जो तुम डिज़र्व करती हो।”

ये शब्द अंजलि के दिल में तीर की तरह चुभे।
क्या वह वाकई डिज़र्व नहीं करती थी वो सब?
जब दिल बहकने लगे…
अब अंजलि रोज़ ऑफिस जल्दी जाने लगी और देर से घर लौटने लगी।
राहुल उसका इंतजार करता, लेकिन अंजलि का दिल अब अमन के ख्वाब बुनने लगा था।
लॉन्ग ड्राइव्स, रोमांटिक डिनर, वीकेंड ट्रिप्स…
अमन के साथ उसे फिर से जीने का अहसास होता था।
राहुल की सीधी-सादी दुनिया अब उसे बोझ लगने लगी थी।
बढ़ती दूरियाँ और रिश्तों की दरारें
राहुल ने कोशिश की बात करने की:
“अंजलि, हमारी शादी को एक साल होने वाला है। क्यों न हम फैमिली प्लान करें?”
लेकिन अंजलि का जवाब टालमटोल वाला था:
“अभी नहीं, करियर पर फोकस करना है।”
असलियत यह थी कि अब उसका दिल राहुल के साथ नहीं था।
रिश्तों में अनकही खामोशियाँ पसर चुकी थीं।
प्यार या मोह? फैसला मुश्किल था
कई रातों तक अंजलि सोचती रही —
“क्या मैं सही कर रही हूँ?”
अमन के साथ हर पल खूबसूरत लगता था, लेकिन राहुल का सच्चा, गहरा प्यार अब उसे “साधारण” लगने लगा था।
उसने सोचा:
“राहुल को छोड़कर अमन के साथ नई ज़िंदगी शुरू करूँ?”
लेकिन सवाल यह था —
क्या अमन भी उसे उसी तरह चाहता था?
सच का सामना
एक दिन हिम्मत जुटाकर अंजलि ने अमन से कह दिया:
“मैं राहुल को छोड़ने का सोच रही हूँ। अगर मैं फ्री हो जाऊँ, तो क्या तुम मेरे साथ नई ज़िंदगी शुरू करोगे?”
अमन का चेहरा पल में बदल गया।
वह मुस्कुराया, लेकिन इस बार उस मुस्कान में कोई गर्माहट नहीं थी।
“देखो अंजलि, हम अच्छे दोस्त हैं। पर शादी… मुझे लगता है तुम कुछ ज्यादा सोच रही हो।”
अंजलि सन्न रह गई।
जिस सपने को वह सच मान बैठी थी, वो महज एक भ्रम था।
अमन ने कभी उसे अपना बनाने का वादा ही नहीं किया था।
उसके लिए अंजलि सिर्फ एक वक़्ती साथी थी।
टूटी उम्मीदें, टूटा दिल
अंजलि को अब समझ में आया कि राहुल जैसा सच्चा प्यार शायद ज़िंदगी में एक बार ही मिलता है।
लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।
राहुल ने अंजलि की बदलती नजरों को पहचान लिया था।
धीरे-धीरे उसने खुद को अंजलि से दूर कर लिया।
वह टूट चुका था, लेकिन उसने शिकायत नहीं की।
अंजलि के पास अब न अमन था, न राहुल।
बस एक गहरी खालीपन थी और बहुत सारे सवाल…