प्रस्तावना: प्यार जो कभी ख़त्म नहीं होता
कहते हैं प्यार कभी अचानक नहीं आता, और शायद वो कभी जाता भी नहीं।
कभी-कभी हालात, दूरी और किस्मत, दो प्यार करने वालों को एक-दूसरे से इतनी दूर कर देते हैं कि वे खुद से सवाल करने लगते हैं — क्या हमारा रिश्ता सच में सिर्फ एक याद बनकर रह जाएगा?
यह कहानी है रवि और पूजा की। दो दिल, दो राहें, और एक ऐसा प्यार जिसे किस्मत ने बार-बार परखा।
पहला अध्याय: एक अनकहा रिश्ता
रवि और पूजा की मुलाक़ात कॉलेज के दिनों में हुई थी।
क्लासरूम की छोटी-छोटी बहसें, लाइब्रेरी में साथ बिताया वक़्त, और एक-दूसरे के साथ नोट्स शेयर करने का सिलसिला… कब एक गहरे प्यार में बदल गया, उन्हें खुद पता नहीं चला।

रवि अक्सर पूजा से कहा करता था: “पूजा, जब तुम साथ होती हो न… तो मुझे दुनिया के किसी भी तूफान से डर नहीं लगता।”
पूजा बस मुस्कुराकर एक ही जवाब देती: “मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”
लेकिन “हमेशा” शब्द, कभी-कभी वक़्त के सामने बहुत छोटा पड़ जाता है।
दूसरा अध्याय: दूरी और बिछड़ना
प्यार के रास्ते हमेशा आसान नहीं होते। रवि के परिवार की आर्थिक स्थिति कमज़ोर थी। कंधों पर आई जिम्मेदारियों ने उसे एक अच्छी नौकरी की तलाश में शहर से दूर जाने पर मजबूर कर दिया।
शुरुआत में सब ठीक था, लेकिन धीरे-धीरे दूरी ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। फोन कॉल्स कम होने लगे और बातें छोटी हो गईं।
इसी बीच, पूजा के घरवाले उस पर शादी के लिए दबाव डालने लगे। एक दिन, परिवार के दबाव और हालातों के आगे पूजा को झुकना पड़ा। उसका रिश्ता कहीं और तय कर दिया गया।
पूजा पूरी तरह टूट चुकी थी। उसने काँपते हाथों से रवि को सिर्फ एक आखिरी मैसेज भेजा: “माफ़ करना रवि… शायद किस्मत को हमारा साथ मंज़ूर नहीं था।”

मैसेज पढ़ते ही रवि के हाथ से फोन छूट गया। उस एक पल में, उसका दिल और दुनिया, दोनों जैसे थम से गए थे।
तीसरा अध्याय: एक हादसा जिसने सब बदल दिया
वक़्त अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा। रवि ने खुद को काम में डुबो दिया, लेकिन दिल का एक कोना हमेशा के लिए खाली हो गया था।
कई साल बीत गए।
एक दिन रवि को एक ऐसी खबर मिली जिसने उसकी ज़मीन हिला दी। उसे पता चला कि पूजा की शादी के कुछ ही महीनों बाद, एक गंभीर सड़क हादसे ने उसकी ज़िंदगी बदल दी थी।
वो जिंदा थी, पर शायद पहले जैसी नहीं रही।
यह सुनते ही रवि के सीने में अपराधबोध का एक भारी पत्थर आ गिरा। “मैंने उसे अकेला छोड़ दिया था… शायद यह सब मेरी ही गलती है,” उसने खुद से कहा।
बिना एक पल सोचे, बिना किसी उम्मीद के, रवि अपना सब कुछ छोड़कर पूजा को ढूँढने निकल पड़ा।
चौथा अध्याय: तलाश और एक दर्द भरी सच्चाई
रवि उस पुराने शहर पहुँचा, जहाँ की गलियों में कभी उनकी हँसी गूँजती थी। वह हर उस जगह गया, जहाँ पूजा के होने की ज़रा सी भी उम्मीद थी।
लेकिन हर दरवाज़े पर उसे निराशा ही मिली।
“पूजा? वो तो अब यहाँ नहीं रहतीं।” “हादसे के बाद वो और उनका परिवार सब छोड़कर कहीं चले गए।”
हर जवाब रवि के दिल पर एक नई चोट करता। उसके कदम भारी हो गए। क्या किस्मत इतनी बेरहम हो सकती है? क्या उसने पूजा को हमेशा के लिए खो दिया था?
पाँचवाँ अध्याय: अधूरी दुआ का पूरा होना
कई हफ्तों की बेतहाशा तलाश के बाद, रवि को एक छोटे से कस्बे के रिहैबिलिटेशन सेंटर (अस्पताल) के बारे में पता चला। उसे बस इतना पता था कि वहाँ ‘पूजा’ नाम की एक लड़की का इलाज चल रहा है।
वो धड़कते दिल से वहाँ पहुँचा।
कमरे का दरवाज़ा खोला… और सामने… व्हीलचेयर पर बैठी उसकी पूजा थी। कमजोर, गुमसुम, पर वही आँखें… जिनमें कभी पूरी दुनिया बसती थी।
रवि वहीं जम गया। पूजा ने धीरे से सिर उठाया। एक पल के लिए दोनों की साँसें रुक गईं।
पूजा की आँखें आँसुओं से भर गईं: “रवि… क्या ये सच में तुम हो? या मैं फिर कोई सपना देख रही हूँ?”
रवि उसके पास घुटनों पर बैठ गया और काँपते हाथों से उसका हाथ थाम लिया। “मैंने तुम्हें कभी छोड़ा नहीं था पूजा… बस ज़िंदगी ने हम दोनों को एक-दूसरे से बहुत दूर कर दिया था।”
पूजा फूट-फूटकर रो पड़ी। “मैंने वक़्त को… मुझे तुमसे छीनने दिया… पर मेरा दिल हमेशा तुम्हारा ही रहा।”

रवि ने उसका हाथ पकड़कर कहा: “प्यार हारता नहीं है, पूजा। वो बस सही वक़्त का इंतज़ार करता है।”
छठवाँ अध्याय: एक नया आरंभ
उस दिन के बाद रवि वापस नहीं लौटा। उसने अपना सब कुछ पूजा के इलाज में लगा दिया। यह सिर्फ दवाइयों का नहीं, बल्कि प्यार और अपनेपन का मरहम था, जो पूजा को तेज़ी से ठीक कर रहा था।
धीरे-धीरे पूजा की सेहत सुधरने लगी। उसकी खोई हुई मुस्कान लौटने लगी।
इस बार न कोई सामाजिक दबाव था, न कोई मजबूरी, और न ही कोई दूरी। सिर्फ दो दिल थे, जो एक-दूसरे के लिए धड़कने को बेताब थे। दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थामकर एक नई शुरुआत की।
समापन: क्योंकि प्यार कभी खत्म नहीं होता
यह कहानी यहाँ खत्म नहीं होती, क्योंकि सच्ची प्रेम कहानियाँ कभी खत्म नहीं होतीं।
कभी-कभी किस्मत दो प्यार करने वालों को अलग तो कर सकती है, उन्हें मीलों दूर ले जा सकती है, लेकिन उनके दिलों को नहीं बाँध सकती।
रवि और पूजा की कहानी इस बात का सबूत है कि दिल हमेशा वो रास्ता ढूँढ ही लेता है, जहाँ दो अधूरे इंसान मिलकर… फिर से ‘पूरे’ बन जाते हैं।
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