मेरा नाम प्रिया है, और मेरी कहानी उन सपनों से शुरू होती है जो मैंने जयपुर की रंगीन गलियों में विक्रम के साथ देखे थे। विक्रम मेरी ज़िंदगी का सितारा था, मेरी मोहब्बत का वो फ़साना जिसे मैं हकीकत बनाना चाहती थी। उसकी गहरी आँखों और मीठी बातों ने मुझे ऐसे मोह लिया था कि मैंने उसके लिए अपने माँ-बाप की बरसों की मोहब्बत को भी ठुकरा दिया।

मेरे माता-पिता ने मुझे बहुत समझाया, “प्रिया, यह जमींदार खानदान ठीक नहीं है। उनकी हवेलियों में औरतें कैदियों की तरह रहती हैं।” मेरी माँ ने रोते हुए मेरे पैर पकड़ लिए, “बेटी, मेरी बात मान, तू पछताएगी।”
लेकिन मैं प्यार में अंधी थी। विक्रम ने मुझसे वादा किया था, “प्रिया, मैं तुम्हें जयपुर में रखूँगा, गाँव की पाबंदियों से दूर।” मैंने उसकी बात पर यकीन कर लिया और अपने परिवार से बगावत करके उससे शादी कर ली।
सोने का पिंजरा और एक भयानक राज़
शादी के बाद, मैं विक्रम के गाँव चंदनपुर की शानदार ‘शांति निवास’ हवेली में आई। शुरू में सब कुछ सपनों जैसा था। मेरे ससुर, ठाकुर वीरेंद्र, दिन में मंदिर में भजन गाते थे और सास, वैदेही, ने मुझे बेटी जैसा प्यार दिया। मुझे लगा कि मैंने सही फैसला लिया है।
लेकिन मेरी यह खुशी जल्द ही एक भयानक सपने में बदलने वाली थी। कुछ ही दिनों बाद, विक्रम मुझे उस हवेली में अकेला छोड़कर जयपुर लौट गया। और फिर, उन अंधेरी रातों में, मुझे उस हवेली का वो राज़ पता चला जिसने मेरी रूह को कंपा दिया।

देर रात, हवेली के एक बंद कमरे से ढोल, सारंगी और घुंघरूओं की तेज़ आवाज़ें आने लगतीं। कोई औरत बेहया गीत गाती और हवा में शराब की गंध फैल जाती। जब मैंने अपनी सास से इस बारे में पूछा, तो उन्होंने मुझे घूरकर कहा, “इस हवेली में रहना है तो आँखें और कान बंद रख, वरना बर्बाद हो जाएगी।”
जब देवता का शैतानी चेहरा सामने आया
मेरा दिल डर और शक से भर गया। एक रात, मैंने हिम्मत करके उस कमरे की खिड़की से झाँका। अंदर का नज़ारा देखकर मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई।
वो कोई और नहीं, बल्कि मेरे ससुर, ठाकुर वीरेंद्र थे, जो दिन में देवता बनकर घूमते थे और रात को नशे में धुत होकर एक नाचने वाली के साथ अपनी हवस पूरी कर रहे थे।
मेरा दिल नफरत से भर गया। अगले ही दिन, जब मैं उनके कमरे में चाय लेकर गई, तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और गंदी नज़रों से घूरते हुए कहा, “तू रात को मेरी जासूसी करती है?”
मैं डर के मारे कांपती हुई वहाँ से भाग आई। मैंने विक्रम को फोन किया और रोते हुए कहा, “मुझे यहाँ से ले जाओ, यह घर जहन्नुम है।” लेकिन उसने साफ़ कह दिया, “मैं अपने बाबा के खिलाफ नहीं जा सकता।”
उस दिन मेरा दिल टूट गया। जिस मोहब्बत के लिए मैंने अपने माँ-बाप को छोड़ा था, उस मोहब्बत ने ही आज मुझे एक दरिंदे के हवाले कर दिया था।
इज़्ज़त की वो लड़ाई…
उस रात, ठाकुर वीरेंद्र नशे में धुत होकर मेरे कमरे में घुस आए और मुझसे नाचने के लिए कहा। जब मैंने इंकार किया, तो उन्होंने मेरे बाल पकड़कर मुझे ज़मीन पर पटक दिया और मेरी इज़्ज़त पर हाथ डालने की कोशिश की।
अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए, मैंने पास पड़ी इत्र की शीशी उठाकर उनके सिर पर दे मारी। वह खून से लथपथ होकर वहीं गिर पड़े और मैं अपनी जान बचाकर उस हवेली से भाग निकली।

मैं पूरी रात जंगल में भागती रही, यह सोचकर कि अब मैं आज़ाद हूँ। सुबह मुझे पुलिस मिली, और मैंने उन्हें पूरी कहानी सुनाई। लेकिन वो पुलिसवाले भी उन दरिंदों के गुलाम थे। उन्होंने मुझ पर ही अपने ससुर के क़त्ल का इल्ज़ाम लगाकर मुझे जेल में बंद कर दिया, और फिर…
कहानी से सीख (The Moral of the Story)
- माँ-बाप से बड़ा कोई हमदर्द नहीं: यह दर्दनाक कहानी सिखाती है कि हम चार दिन के प्यार के लिए अक्सर अपने माँ-बाप की बरसों की सच्ची मोहब्बत और उनकी चेतावनियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जिसका अंजाम बहुत बुरा होता है।
- हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती: विक्रम का प्यार और उस हवेली की शान-शौकत एक धोखा थी। सच्चा रिश्ता वादों पर नहीं, बल्कि इज़्ज़त और सुरक्षा पर टिका होता है।
- आँखें बंद करके भरोसा करना सबसे बड़ी गलती है: प्रिया ने विक्रम पर अंधा भरोसा किया और उसके पीछे छिपे सच को नहीं देखा। प्यार में भरोसा ज़रूरी है, लेकिन आँखें खुली रखकर।