
किरण की बातों में छिपी शरारत को देखकर मैं क्षण भर के लिए उलझन में पड़ गया। उसकी हँसी में एक अल्हड़पन था, मगर मेरे मन में तो हिनाया के प्रति दबी हुई भावनाएं हिलोरें मार रही थीं। “किरण,” मैंने कहा, “तुम्हारी पढ़ाई ज़रूरी है, और मैं उसमें पूरी मदद करूँगा।” उसकी मुस्कान मेरे दिल तक पहुँचकर भी कहीं खो गई, क्योंकि मेरे विचारों में तो हिनाया की मासूमियत बसी थी।
उन दिनों हमारी पढ़ाई जारी रही, पर मेरा ध्यान अक्सर भटक जाता। किरण की चंचल निगाहें और उसकी बातों में छिपी बेफिक्री मुझे हिनाया की शांत और गहरी आँखों से अलग लगती थी। हिनाया, जो अक्सर खामोश रहती थी, उसकी आँखों में एक रहस्यमयी चमक दिखती थी, जिसे मैं समझने के लिए बेचैन रहता था।
फिर वह दिन आया जब हिनाया के इम्तिहान खत्म हुए। उसकी बातों में अब पहले जैसी झिझक तो नहीं थी, मगर एक अनकही सी बात उसकी हर मुस्कान में छुपी रहती थी। एक शाम जब चाँदनी रात में मैं छत पर अकेला टहल रहा था, तो मैंने देखा कि हिनाया भी अपनी छत पर खड़ी है, तारों को निहार रही है।
“हिनाया,” मैंने हौले से पुकारा।
वह चौंककर मेरी ओर मुड़ी। उसकी आँखों में चाँदनी का नूर और एक अनकहा सा सवाल तैर रहा था। “गोपाल भैया?”
“मैं… मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ,” मैंने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ कहा।

उसने गहरी साँस ली, जैसे किसी बड़े रहस्य को सुनने के लिए तैयार हो। “हाँ, भैया कहिए।”
“वह जो अनजान नंबर से तुम्हें मैसेज आते थे…” उसकी बात अधूरी ही रह गई, क्योंकि हिनाया ने अपनी पलकें झुका लीं और धीरे से बोली, “वो… वो मैं थी।”
मेरा दिल एक पल के लिए थम सा गया। यह क्या सुन रहा हूँ? “तुम?” मेरे मुँह से बस इतना ही निकल पाया।
उसने अपनी उंगलियों से दुपट्टे को मरोड़ते हुए कहा, “हाँ भैया। मैं आपको… बहुत पहले से पसंद करती हूँ।” उसकी आवाज़ में एक मासूमियत थी, एक ऐसा समर्पण जिसने मेरे दिल को छू लिया।
यह सुनकर मैं अवाक रह गया। हिनाया, वह शांत और संकोची लड़की, मेरे लिए ऐसी भावनाएं रखती थी? यह किसी सपने जैसा था।
“लेकिन… क्यों हिनाया?” मैंने धीरे से पूछा, मेरी आवाज़ में अविश्वास और एक अनजान सी खुशी घुली हुई थी।
“मुझे नहीं पता भैया,” उसने अपनी आँखें उठाकर मेरी आँखों में देखा। उस पल, उसकी आँखों में छुपा प्यार साफ झलक रहा था। “बस… जब से मैंने आपको पहली बार देखा, मुझे लगा कि आप सबसे अलग हैं। आपकी बातें, जिस तरह से आप सबका ध्यान रखते हैं… मुझे सब अच्छा लगता था। आपकी मुस्कान… वह मेरे दिल को सुकून देती थी।”
तभी नीचे से राधा देवी की स्नेह भरी आवाज आई, “हिनाया, इतनी रात गए ऊपर क्या कर रही हो?”
हिनाया घबरा गई, उसकी आँखों में एक पल के लिए डर झलक गया। “कुछ नहीं माँ। बस भैया से बात कर रही थी।”
उसने मेरी तरफ एक आखिरी नजर डाली, जिसमें ढेर सारा प्यार और एक अनकहा सा वादा छिपा था, और फिर तेजी से नीचे चली गई।
मैं छत पर अकेला खड़ा रहा, हिनाया के कबूलनामे से मेरा हृदय पुलकित हो रहा था। चाँदनी रात और भी हसीन लग रही थी। एक तरफ राधा देवी के रहस्यमय व्यवहार का सवाल था, तो दूसरी तरफ हिनाया का यह अप्रत्याशित, पर गहरा प्रेम। मेरी जिंदगी ने अचानक एक नया, रोमांटिक मोड़ ले लिया था।

अगले कुछ दिन एक अजीब सी बेचैनी और मीठी सी खुशी में बीते। मैं हिनाया से छिप-छिप कर मिलता, उसकी एक झलक पाने के लिए बेताब रहता। हमारी आँखें मिलतीं तो एक-दूसरे में खो जाते, बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ कह जाते।
एक शाम जब मैं हिनाया के घर के पास से गुजर रहा था, तो उसने मुझे इशारे से पीछे बुलाया। मैं दबे कदमों से उसके पास पहुँचा।
“गोपाल भैया,” उसने फुसफुसाते हुए कहा, “मैं आपसे बात करना चाहती हूँ, अकेले में।”
मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा। हमने घर के पीछे, बरगद के पेड़ की छाँव में मुलाकात की। हवा में हल्की नमी थी और हिनाया की साँसों की गर्मी मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी।
“मैं… मैं डरती हूँ,” उसने अपनी उंगलियाँ आपस में फंसाते हुए कहा। “कहीं माँ को पता न चल जाए, कहीं किसी को शक न हो जाए।”

“मैं हूँ तुम्हारे साथ हिनाया,” मैंने उसका हाथ धीरे से पकड़ा। उसका हाथ छोटा और नाजुक था, पर उसमें एक अटूट विश्वास झलकता था। “किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। हम धीरे-धीरे सब ठीक कर लेंगे।”
उस रात हमने देर तक बातें कीं, अपने सपनों के बारे में, एक-दूसरे के लिए अपनी भावनाओं के बारे में। हिनाया की हर बात में प्यार और मासूमियत झलकती थी। उसकी हँसी मेरे कानों में मिश्री की तरह घुल रही थी।
हमारी प्रेम कहानी एक छुपी हुई नदी की तरह बह रही थी, धीरे-धीरे, गहराई से। राधा देवी शायद सब कुछ जानती थीं, उनकी आँखों में कभी-कभी एक स्नेह भरी मुस्कान दिखती थी जब वह हमें साथ देखती थीं। एक दिन मैंने हिनाया से पूछा, “तुम्हारी माँ कभी कुछ कहती क्यों नहीं?”
हिनाया ने मेरी आँखों में देखा, उसकी आँखों में कृतज्ञता का भाव था। “माँ… माँ ने बहुत दुख देखे हैं। पिताजी के जाने के बाद उन्होंने हम दोनों को अकेले पाला। शायद वह हमारी खुशी में ही अपनी खुशी देखती हैं।”
हमारी कहानी में प्यार की मिठास के साथ एक डर भी था – समाज का डर, परिवार का डर। क्या हमारी यह अनूठी प्रेम कहानी सबको स्वीकार्य होगी?
एक शाम जब मैं हिनाया के साथ छत पर तारों को देख रहा था, तो राधा देवी धीरे से हमारे पास आईं। उनकी आँखों में नमी थी, पर चेहरे पर एक शांत मुस्कान थी।
“गोपाल,” उन्होंने स्नेह से कहा, “मुझे सब पता चल गया है।”
हम दोनों सहम गए। क्या हमारी छुपी हुई दुनिया अब बिखर जाएगी?
“मैंने हमेशा तुम दोनों को प्यार किया है,” राधा देवी ने अपनी आवाज में ममत्व भरते हुए कहा। “हिनाया मेरी बेटी है, और तुम… तुम मेरे बेटे जैसे हो। अगर तुम दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हो, तो मेरी खुशी इसी में है। बस इतना ध्यान रखना कि इस रिश्ते की मर्यादा हमेशा बनी रहे।”
उनकी बातों ने हमारे दिलों पर जमी बर्फ को पिघला दिया। राधा देवी ने न केवल हमारे प्यार को स्वीकार किया, बल्कि हमें अपना आशीर्वाद भी दिया। उस रात, हमारी प्रेम कहानी को एक नई दिशा मिली, एक ऐसा मोड़ जहाँ डर की जगह विश्वास और सम्मान ने ले ली थी।
हमारी प्रेम कहानी में आगे भी कई मुश्किलें आईं, समाज के ताने-बाने थे, लोगों की बातें थीं, पर हमने हमेशा एक-दूसरे का हाथ थामे रखा। हमारा प्यार हर मुश्किल से लड़ता रहा, और धीरे-धीरे, हमारी पवित्र भावना ने सबके दिलों में जगह बना ली। हमने मिलकर अपने सपनों का एक सुंदर घरौंदा बनाया, जहाँ हर सुबह प्यार की रोशनी फैलती थी और हर रात एक-दूसरे की बाँहों में सुकून मिलता था।
सीख: सच्चा प्रेम किसी बंधन या सामाजिक रीति-रिवाज का मोहताज नहीं होता। यह दिलों का मिलन है, जो विश्वास, सम्मान और समझदारी के धागों से बंधा होता है। कभी-कभी, अप्रत्याशित रूप से मिलने वाला प्यार हमारी जिंदगी को सबसे खूबसूरत मोड़ दे जाता है।