“मेरी चिता को आग… वो देगी!” : 20 साल बाद लौटा एक दफ़न राज़

सुबह के पाँच बजे थे। राजेश, शहर के सबसे कामयाब बिज़नेसमैन, आज मौत के बिस्तर पर थे। उनकी पत्नी प्रिया, जो 20 सालों से उनकी हमसफ़र थी, बेसुध बैठी थी। उसका हाथ अपने पति के ठंडे होते हाथ में था। डॉक्टर जवाब दे चुके थे। घर में मातम पसरा था। बच्चे, रिश्तेदार, सब आखिरी विदाई के लिए मौजूद थे।

तभी, शाम के छः बजे, राजेश ने अचानक अपनी आँखें खोलीं। उनकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे कोई बोझ उनके सीने पर रखा हो। उन्होंने कुछ कहने की कोशिश की, मगर आवाज़ नहीं निकली। प्रिया तुरंत झुकी, “क्या चाहिए? पानी?” राजेश ने ‘ना’ में सिर हिलाया।

उनकी साँसें तेज़ हो रही थीं। आखिरकार, बहुत मुश्किल से, टूटी हुई आवाज़ में राजेश ने कहा, “मेरी एक… आखिरी इच्छा है।”

प्रिया ने तुरंत उनका हाथ और मज़बूती से पकड़ा, “बोलिये ना! आपकी हर इच्छा पूरी होगी।”

राजेश ने अपनी धँसी हुई आँखों से प्रिया को देखा। फिर उन्होंने जो कहा, वो सुनकर कमरे में मौजूद हर शख्स की रूह काँप गई।

“मेरी पहली पत्नी… सविता को बुलाओ।”

ये शब्द नहीं थे, ये प्रिया के सीने में घोंपा गया खंजर था। 20 साल! 20 साल से ये नाम इस घर में दफ़न था। प्रिया का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। “ये आप क्या कह रहे हैं?” प्रिया की आवाज़ काँप रही थी। “मरते वक्त भी उसी का नाम? तो मैं क्या थी आपके लिए? एक नौकराणी?”

बच्चे आर्यन और आराध्या हैरान थे। “पापा, सविता कौन है? आपने हमें कभी नहीं बताया!” राजेश की ज़िद के आगे सब मजबूर थे। उनके भाई विक्रम ने झिझकते हुए 20 साल बाद वो नंबर डायल किया।


20 साल बाद की वो आवाज़

दूसरी तरफ़ फ़ोन उठा। विक्रम ने काँपती आवाज़ में कहा, “सविता, मैं विक्रम बोल रहा हूँ… राजेश… वो मर रहा है। उसकी आखिरी इच्छा है… वो तुम्हें देखना चाहता है।”

कई पलों तक दूसरी तरफ़ बर्फीला सन्नाटा छाया रहा। वो औरत जिसे 20 साल पहले राजेश ने यह कहकर छोड़ दिया था कि उसे किसी और (प्रिया) से प्यार हो गया है, आज उसे ही मरते वक्त क्यों याद कर रहा था? सविता ने सिर्फ़ इतना कहा, “मैं सुबह पहली गाड़ी से आ रही हूँ।”


जब दो पत्नियाँ आमने-सामने हुईं

अगली सुबह सविता बंगले के दरवाज़े पर थी। सादी सफ़ेद साड़ी, चेहरे पर कोई मेकअप नहीं, मगर आँखों में एक अजीब सा ठहराव था। दरवाज़े पर ही प्रिया खड़ी थी। उसकी आँखों में 20 साल का दर्द, नफ़रत और ईर्ष्या थी।

“तो तुम हो सविता,” प्रिया की आवाज़ में ज़हर घुला था। “राजेश का पहला और… असली प्यार।”

सविता ने शांति से कहा, “मैं यहाँ अपनी मर्ज़ी से नहीं आई हूँ, प्रिया। विश्वास करो।”

कमरे में राजेश का इंतज़ार असहनीय हो रहा था। सविता को देखते ही, राजेश की धँसी हुई आँखों में एक चमक आ गई। “तुम… आ गई,” राजेश ने हाँफते हुए कहा।

“हाँ, मैं आ गई हूँ,” सविता ने पास बैठकर शांत स्वर में कहा। “अब बताओ। मुझे यहाँ क्यों बुलाया है?”


वो राज़ जिसने तीन जिंदगियाँ तबाह कीं

राजेश ने काँपती हुई आवाज़ में कहा, “मैं चाहता हूँ… सब यहीं रहें। प्रिया… बच्चे… तुम सब सुनो।”

“20 साल पहले,” राजेश ने बोलना शुरू किया, “मैंने सविता को तलाक़ दिया था। मैंने सबसे कहा कि मुझे प्रिया से प्यार हो गया है। मगर… यह सच नहीं था।” कमरे में जैसे हवा रुक गई। प्रिया का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।

“सविता, मैं तुमसे बहुत प्यार करता था। हद से ज़्यादा। लेकिन हमारी शादी को कई साल बीत गए और हमारे घर बच्चे की किलकारी नहीं गूँजी।” राजेश की आँखों से आँसू बहने लगे। “फिर हम उस डॉक्टर के पास गए थे… उसने मुझे अलग से बुलाया था… और कहा था…”

“क्या कहा था?” सविता ने पूछा।

राजेश ने रोते हुए कहा, “डॉक्टर ने कहा था कि… तुम (सविता) कभी माँ नहीं बन सकती। मगर मैंने ये सच तुमसे छुपाया। क्योंकि मैं जानता था कि तुम टूट जाओगी।”

“मगर मेरी माँ को एक वारिस चाहिए था,” राजेश ने सिसकते हुए कबूल किया। “उन्होंने मुझ पर दबाव डाला। उन्होंने ही प्रिया को चुना था। एक ऐसी लड़की जो इस खानदान को वारिस दे सके।” यह सुनते ही प्रिया पर जैसे बिजली गिर गई। वो ज़मीन पर बैठ गई।

“तो… मेरी शादी सिर्फ़ एक समझौता थी?” प्रिया ने टूटी आवाज़ में पूछा। “मैं सिर्फ़ एक वारिस पैदा करने की मशीन थी? आपने मुझसे… कभी प्यार नहीं किया?”

“मैंने तुम्हें सच इसलिए नहीं बताया सविता,” राजेश ने अपनी पहली पत्नी की ओर देखा, “क्योंकि मुझे लगा कि नफ़रत सहना, यह जानने से बेहतर है कि तुम्हें तुम्हारी एक कमी की वज़ह से छोड़ा जा रहा है। मैंने तुम्हारा दिल तोड़ा, ताकि मैं तुम्हारी आत्मा को न मार दूँ।”

“मगर मेरा दिल… वो हमेशा सविता के पास ही रहा।”


आखिरी इच्छा या सच्चा प्रायश्चित?

कमरे में भयानक सन्नाटा था। प्रिया, सविता, आर्यन, आराध्या… हर कोई इस कबूलनामे से हिल चुका था। तभी विक्रम ने पूछा, “राजेश, तुम्हारी आखिरी इच्छा… वो क्या है?”

राजेश ने अपनी बची-खुची सारी ताकत बटोरी। उसने सविता की तरफ़ देखा और वो शब्द कहे जो इस कहानी का सबसे बड़ा तूफ़ान था:

“मेरी आखिरी इच्छा है… कि मेरी चिता को आग… सविता देगी।”

कमरे में सब अवाक रह गए। राजेश ने कहा, “मैं चाहता हूँ दुनिया जाने कि तुम मेरी असली पत्नी हो। तुम वो हो जिसे मैंने सबसे ज़्यादा चाहा। ये मेरा तुमसे माफ़ी माँगने का तरीका है।”

इससे पहले कि कोई कुछ कहता, सविता, जो अब तक खामोश थी, उसने सिर हिलाया। “नहीं राजेश,” सविता ने दृढ़ता से कहा। “मैं तुम्हें माफ़ कर चुकी हूँ। मगर मैं तुम्हारी चिता को आग नहीं दूँगी।”

राजेश ने हैरानी से पूछा, “क्यों सविता?”

“क्योंकि यह गलत है,” सविता ने प्रिया की ओर इशारा करते हुए कहा। “प्रिया तुम्हारी पत्नी है। पिछले 20 साल से उसने तुम्हारी सेवा की है। उसने तुम्हें बच्चे दिए हैं। यह हक़ उसका है। असली प्रायश्चित यह है कि तुम प्रिया और अपने बच्चों को वो सम्मान दो, जिसके वो हक़दार हैं।” सविता ने आर्यन की तरफ देखा, “तुम्हारा बेटा आर्यन तुम्हारा असली वारिस है। वो ही तुम्हारी चिता को आग देगा।”

प्रिया ने सविता को हैरानी से देखा। उसकी आँखों में अब नफ़रत नहीं, कृतज्ञता थी। राजेश ने राहत की एक लंबी साँस ली। कुछ घंटों बाद, राजेश ने प्रिया और सविता, दोनों की मौजूदगी में, शांति से दम तोड़ दिया। शमशान घाट पर, आर्यन ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। सविता कुछ दूर चुपचाप खड़ी रही।


💓 कहानी की सीख (Moral of the Story)

इस कहानी में प्यार के तीन रूप दिखे:

  1. राजेश का प्यार: जो समाज के दबाव और ‘वारिस’ की ज़िद के आगे कमज़ोर पड़ गया और एक झूठ में उलझकर रह गया।
  2. प्रिया का प्यार: जो 20 साल की सेवा और समर्पण था, भले ही उसकी नींव एक धोखे पर रखी गई थी।
  3. सविता का प्यार: जो वक़्त के साथ नफ़रत और बदले से कहीं ऊपर उठ गया। यह प्यार ‘माफ़ी’ और ‘त्याग’ का सबसे शुद्ध रूप बन गया।

सच्चा प्यार सिर्फ़ पा लेने का नाम नहीं है। सच्चा प्यार वो है जो ज़हर पीकर भी अमृत बाँटे, जो टूटने के बाद भी दूसरों को जोड़ना जाने, और जो अपना हक़ भी दूसरे की खुशी के लिए त्याग दे। सविता ने यही किया।

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