औरत का दुख – भाग 2: छुपा हुआ सच

सपने वो नहीं जो रातों में देखे जाते हैं, सपने वो हैं जो आपको रातों में सोने न दें। आंचल और अंबिका, दो बहनें, अपने सपनों के लिए दिन-रात मेहनत कर रही थीं, लेकिन उनके माता-पिता का दबाव और समाज की रूढ़ियां उनके रास्ते में कांटे बिछा रही थीं। आंचल को मिली एक गुमनाम चिट्ठी ने उसके मन में सवाल खड़े कर दिए थे। क्या कोई उसकी मदद करना चाहता था, या कोई और खेल चल रहा था? आइए, इस कहानी का अगला मोड़ देखते हैं…

चिट्ठी का रहस्य
आंचल अपने कमरे में बैठी थी, उसकी उंगलियों में वही चिट्ठी थी जो उसे पिछले दिन मिली थी। “अपने सपनों को मत छोड़ो, वरना जिंदगी भर पछताओगी।” ये शब्द उसके दिमाग में बार-बार गूंज रहे थे। उसका मन बेचैन था। क्या ये चिट्ठी अनिरुद्ध ने भेजी थी? या कोई और था जो उसकी जिंदगी में दखल दे रहा था? आंचल ने चिट्ठी को तह करके अपनी किताब में छिपा दिया और घर से निकल पड़ी। उसे वृंदा से बात करनी थी।

वृंदा के घर पहुंचते ही आंचल ने उसे सारी बात बताई। “वृंदा, मुझे ये चिट्ठी मिली है। मुझे नहीं पता ये किसने भेजी, लेकिन इसमें मेरे सपनों की बात लिखी है। क्या तुम्हें कुछ पता है?”

वृंदा ने चिट्ठी को ध्यान से देखा और हंसते हुए बोली, “अरे, आंचल, ये तो कोई तुम्हारा फैन लगता है! शायद कोई जानता है कि तुम टीचर बनना चाहती हो। लेकिन तू इतना डर क्यों रही है? तुझे तो खुश होना चाहिए कि कोई तेरे सपनों को समझता है।”

आंचल ने गहरी सांस ली। “वृंदा, मां-पापा मेरी शादी की बात कर रहे हैं। साहिल नाम का लड़का… उसने मेरा फोटो देख लिया है, और अगले रविवार को सगाई की बात पक्की हो रही है। मैं क्या करूं? मैं टीचर बनना चाहती हूं, लेकिन मां-पापा को दुखी भी नहीं करना चाहती।”

तभी अनिरुद्ध वहां आया। उसने आंचल की उदासी देखी और पूछा, “आंचल, सब ठीक है ना? तुम बहुत परेशान लग रही हो।”

आंचल ने हिचकिचाते हुए कहा, “हां, सब ठीक है। बस… कुछ घर की बातें।”

अनिरुद्ध ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “अगर कुछ परेशानी हो, तो मुझे बता देना। मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं।”

आंचल ने कुछ नहीं कहा और जल्दी से वहां से चली गई। लेकिन अनिरुद्ध की बातें उसके मन में गूंज रही थीं। क्या अनिरुद्ध वाकई उसकी मदद करना चाहता था, या उसके पीछे कोई और मकसद था?

अंबिका की बगावत
उधर, अंबिका अपने कमरे में बैठी थी। उसका मन गुस्से से भरा था। वह अपनी दीदी आंचल की हालत देखकर तंग आ चुकी थी। उसे लगता था कि मां-पापा सिर्फ अपनी इज्जत और समाज की परवाह करते हैं, बेटियों के सपनों की नहीं। अंबिका का एक दोस्त था, आकाश, जिससे वह प्यार करती थी। आकाश और अंबिका दो साल से एक-दूसरे को जानते थे, लेकिन अंबिका को पता था कि मां-पापा इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

एक दिन, आकाश ने अंबिका से कहा, “अंबिका, तुम इतनी परेशान क्यों रहती हो? अगर तुम्हारे मां-पापा हमारी शादी के लिए नहीं मानते, तो हम क्या करेंगे?”

अंबिका ने गुस्से में जवाब दिया, “मैं दीदी की तरह नहीं हूं, आकाश। मैं अपनी खुशी के लिए किसी से भी बगावत कर सकती हूं। अगर मां-पापा ने मेरी शादी की जिद की, तो मैं घर छोड़कर चली जाऊंगी।”

आकाश ने हंसते हुए कहा, “तू तो बिल्कुल जंगली बिल्ली है! लेकिन मैं तुम्हारे साथ हूं। बस, जल्दी कोई फैसला लेना, वरना मां-पापा तुम्हारी भी शादी कहीं और पक्की कर देंगे।”

अंबिका ने मुस्कुराते हुए कहा, “देखते हैं, आकाश। मैं अपनी जिंदगी अपने तरीके से जिऊंगी।”

लेकिन उसी शाम, जब अंबिका घर लौटी, तो उसकी मां शारदा ने उसे एक बुके पकड़ते हुए पूछा, “ये बुके किसने भेजा, अंबिका? और ये आकाश कौन है?”

अंबिका का चेहरा लाल हो गया। उसने जल्दी से कहा, “मां, ये मेरा दोस्त है। कल मेरा बर्थडे है, इसलिए उसने भेजा है। इसमें क्या गलत है?”

शारदा ने सख्त लहजे में कहा, “अंबिका, तू आजकल बहुत जुबान चलाने लगी है। अगर तेरा कोई अफेयर चल रहा है, तो अभी बता दे, वरना हम तेरी शादी कहीं और पक्की कर देंगे।”

अंबिका ने गुस्से में जवाब दिया, “मां, मैं 18 साल की हूं। मैं अपने फैसले खुद ले सकती हूं। आप और पापा हमेशा दीदी पर दबाव डालते हो, और अब मुझ पर भी शुरू हो गए? मैं नौकरी करूंगी, अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जिऊंगी।”

शारदा गुस्से से चिल्लाई, “एक और शब्द बोला, तो तेरी पढ़ाई बंद कर दूंगी!”

अंबिका ने बिना कुछ बोले कमरे में चली गई, लेकिन उसके मन में तूफान उठ रहा था।

आंचल की उलझन
आंचल की जिंदगी भी किसी उलझन से कम नहीं थी। एक तरफ मां-पापा की शादी की बात, दूसरी तरफ उसका टीचर बनने का सपना। वह रात-रात भर जागकर पढ़ाई करती थी, लेकिन मन में डर था कि कहीं उसकी सगाई सचमुच पक्की हो गई, तो वह अपने सपनों को कैसे पूरा करेगी? अनिरुद्ध की बातें उसे बार-बार याद आ रही थीं। उसकी आवाज में एक अजीब सा सुकून था, जो आंचल को बेचैन कर रहा था।

एक दिन, आंचल फिर वृंदा के घर गई। वहां अनिरुद्ध ने उसे देखते ही कहा, “आंचल, मैंने तुम्हारे लिए कुछ स्टडी मटेरियल लाया है। तुम्हारा इम्तिहान नजदीक है, ना? ये ले लो, इससे मदद मिलेगी।”

आंचल ने हिचकिचाते हुए मटेरियल लिया और कहा, “शुक्रिया, अनिरुद्ध। लेकिन तुम मेरी इतनी मदद क्यों कर रहे हो?”

अनिरुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, “बस, यूं ही। मुझे लगता है कि तुम बहुत मेहनती हो। तुम्हें अपने सपनों को पूरा करना चाहिए।”

आंचल का मन थोड़ा हल्का हुआ, लेकिन उसे शक था। क्या अनिरुद्ध वही था जिसने चिट्ठी भेजी थी? या कोई और था जो उसकी जिंदगी में दखल दे रहा था?

उसी रात, जब आंचल घर लौटी, तो उसे अपनी किताबों के बीच एक और चिट्ठी मिली। उसमें लिखा था, “साहिल वो नहीं है जो तुम सोच रही हो। उसका सच जान लो, वरना सब बर्बाद हो जाएगा।”

आंचल का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। साहिल के बारे में ऐसा क्या था जो उसे नहीं पता था? क्या कोई उसकी शादी को तोड़ने की कोशिश कर रहा था? या कोई उसकी मदद करना चाहता था? आंचल ने चिट्ठी को जल्दी से छिपा लिया, लेकिन उसका मन बेचैन था। क्या वह अपने माता-पिता की बात माने, या इस रहस्य को सुलझाए? और सबसे बड़ा सवाल – क्या अनिरुद्ध का इस चिट्ठी से कोई लेना-देना था?

जारी रहेगा…

अगले भाग में जानिए, आंचल उस चिट्ठी के पीछे का सच कैसे खोजती है, और क्या साहिल का कोई गहरा राज सामने आएगा? अंबिका की बगावत क्या नया तूफान लाएगी? अगला मोड़ आपका इंतजार कर रहा है!

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