कभी-कभी सपने वो बोझ बन जाते हैं, जिन्हें ढोने के लिए इंसान को अपने ही अपनों से लड़ना पड़ता है। ये कहानी है आंचल और अंबिका की, दो बहनों की, जिनके दिल में बड़े-बड़े सपने थे, लेकिन उनके माता-पिता की सोच उनके रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट थी। क्या ये बहनें अपने सपनों को हकीकत में बदल पाएंगी, या समाज और परिवार की बेड़ियों में बंधकर रह जाएंगी? आइए, इस इमोशनल और प्रेरणादायक कहानी की शुरुआत करते हैं…
घर का माहौल
रानीखेत का एक साधारण सा मोहल्ला, जहां बहादुर सिंह और उनकी पत्नी शारदा अपने दो बेटियों, आंचल और अंबिका, के साथ रहते थे। आंचल 21 साल की थी, शांत और आज्ञाकारी, जो हमेशा माता-पिता की बात मानती थी। अंबिका, 18 साल की, बिल्कुल उलट थी – बेबाक, जिद्दी, और अपने हक के लिए लड़ने वाली। लेकिन इस घर में एक बात हमेशा खटकती थी – बहादुर सिंह और शारदा को बेटा न होने का मलाल। इस कमी ने उनके दिल में बेटियों के लिए प्यार को कहीं दबा दिया था।

एक सुबह, आंचल अपनी मां शारदा से बोली, “मां, क्या मैं आज वृंदा के घर जा सकती हूं? मुझे इंटरव्यू की तैयारी के लिए किताबें चाहिए। वृंदा के पापा ने सारा स्टडी मटेरियल खरीद रखा है।”
शारदा ने सख्त लहजे में जवाब दिया, “किसी के घर जाकर उनकी किताबों से पढ़ने की क्या जरूरत? लोग क्या सोचेंगे कि तुम्हारे मां-बाप तुम्हें कुछ नहीं देते?”

आंचल ने हिम्मत जुटाकर कहा, “मां, मेरे सारे दोस्त स्टडी टूर पर जा रहे हैं, लेकिन आपने कहा कि ये फालतू खर्चा है। मेरे क्लासमेट्स को भी पता है कि आप और पापा मेरी पढ़ाई में सपोर्ट नहीं करते।”
शारदा का गुस्सा भड़क उठा। “बड़ी-बड़ी बातें करने से सच बदल नहीं जाएगा, आंचल। मैं तुम्हारी दीदी नहीं हूं जो हर बात मान लूं।”
तभी बहादुर सिंह कमरे में आए और गुस्से में बोले, “पढ़ने-लिखने दे रहे हैं, इतना काफी नहीं? फालतू खर्चों के लिए अपनी सारी जमा-पूंजी उड़ा दें?”
आंचल चुप हो गई। उसका सपना टीचर बनने का था, लेकिन माता-पिता का ये रवैया उसे अंदर ही अंदर तोड़ रहा था।
अंबिका का जोश
उधर, अंबिका अपने कमरे में दीदी और मां की बातें सुन रही थी। वह दीदी की तरह चुपचाप सहन करने वालों में से नहीं थी। उसने आंचल से कहा, “दीदी, तुम इतना उदास क्यों हो रही हो? मां-पापा को हमेशा बेटा चाहिए था, ये तो हमें पता है। लेकिन वो ये क्यों नहीं समझते कि अगर हम नौकरी कर लें, तो उनके बुढ़ापे में उनकी मदद कर सकते हैं?”

आंचल ने उदास होकर कहा, “अंबिका, मुझे सब पता है। लेकिन मैं मां-पापा को दुखी नहीं करना चाहती।”
अंबिका ने जोश में जवाब दिया, “मैं तुम्हारी तरह नहीं हूं, दीदी। मैं अपने कोर्स के बाद चुपके से नौकरी ढूंढूंगी। अगर मां-पापा ने रोका, तो मैं घर छोड़कर चली जाऊंगी। तुम भी अपने सपनों के लिए लड़ो, दीदी। आज की दुनिया में अपने लिए खड़ा होना जरूरी है।”
अंबिका की बातों ने आंचल के दिल को छू लिया। वह जानती थी कि अंबिका सही कह रही है, लेकिन उसका नरम स्वभाव उसे बगावत से रोकता था। फिर भी, वह चुपके-चुपके वृंदा के घर जाकर पढ़ाई करती थी। वृंदा उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी, और उसके पिता ने आंचल के लिए स्टडी मटेरियल खरीद रखा था।
एक दिन, वृंदा के घर पर आंचल की मुलाकात वृंदा के चचेरे भाई अनिरुद्ध से हुई। अनिरुद्ध ने हल्के-फुल्के अंदाज में पूछा, “आंचल, तुम इतनी चुप-चुप क्यों रहती हो? कोई बात है क्या?”

आंचल ने जवाब नहीं दिया और जल्दी से घर लौट गई। लेकिन अनिरुद्ध की आवाज और उसका ध्यान आंचल के मन में अजीब सी हलचल पैदा कर गया।
शादी की बात
कुछ दिन बाद, शारदा ने आंचल को बुलाकर कहा, “आंचल, तुम्हारी शादी की बात चल रही है। बैंगलोर में नौकरी करने वाला एक लड़का, साहिल, है। उसने तुम्हारा फोटो देख लिया है और वो तैयार है। अगले रविवार को सगाई की बात पक्की हो जाएगी।”

आंचल का दिल बैठ गया। वह टीचर बनने का सपना देख रही थी, लेकिन मां-पापा की बात मानने की आदत ने उसे चुप कर दिया। उसने सिर्फ सिर हिलाया और अपने कमरे में चली गई। उधर, अंबिका अपनी दीदी की हालत देखकर गुस्से में थी। उसने कहा, “दीदी, तुम इतनी जल्दी शादी क्यों कर रही हो? तुम्हें अपने सपनों के लिए लड़ना चाहिए!”
आंचल ने जवाब दिया, “अंबिका, मैं मां-पापा को दुखी नहीं करना चाहती।”
लेकिन अंबिका का मन शांत नहीं था। उसे अपने दोस्त आकाश से प्यार था, और वह किसी भी हाल में मां-पापा के दबाव में शादी नहीं करना चाहती थी। उसने आकाश से कहा, “मैं दीदी की तरह नहीं हूं। अगर मां-पापा ने मेरी शादी की जिद की, तो मैं उनके खिलाफ बगावत कर दूंगी।”
एक शाम, आंचल मंदिर के बहाने वृंदा के घर पढ़ने गई। वहां अनिरुद्ध फिर मिला। उसने आंचल से पूछा, “सुना है तुम्हारी शादी की बात चल रही है। लेकिन तुम खुश तो हो ना?”
आंचल ने नजरें झुकाकर कहा, “मां-पापा जो चाहते हैं, वही ठीक है।”
उस रात, जब आंचल घर लौटी, तो उसे अपने कमरे में एक गुमनाम चिट्ठी मिली। उसमें लिखा था, “अपने सपनों को मत छोड़ो, वरना जिंदगी भर पछताओगी।” आंचल का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। ये चिट्ठी किसने भेजी? क्या कोई उसकी मदद करना चाहता था, या कोई और खेल चल रहा था? क्या आंचल अपने सपनों के लिए हिम्मत जुटा पाएगी, या शादी की बेड़ियों में बंध जाएगी?

जारी रहेगा…
अगले भाग में जानिए, आंचल उस चिट्ठी के पीछे का राज कैसे खोजती है, और क्या अनिरुद्ध का उससे कोई गहरा कनेक्शन है? अंबिका की बगावत क्या नया तूफान लाएगी? अगला मोड़ आपका इंतजार कर रहा है!